प्रवेश प्रक्रिया के दौरान विद्यार्थियों से मूल दस्तावेज अब शैक्षणिक संस्थान अपने पास नहीं रख सकेंगे। शनिवार को कलेक्टर आशीष सिंह ने छात्र-छात्राओं की शिकायत के बाद यह निर्देश जारी किए हैं।
बीते दिनों एक दर्जन से ज्यादा विद्यार्थियों ने कलेक्टर जनसुनवाई में कालेजों व स्कूलों द्वारा मूल दस्तावेज नहीं लौटाने के संबंध में शिकायत दर्ज करवाई थी, जिसमें अंकसूची-प्रमाण पत्र देने के लिए विद्यार्थियों से मोटी रकम वसूलने की बात भी सामने आई है।
वहीं आदेश में उन संस्थानों को तुरंत दस्तावेज लौटाने को कहा है, जिन्होंने अपने कार्यालय में इन्हें रखा है। बीते दिनों विद्यार्थियों ने जनसुनवाई एवं सीएम हेल्प लाइन में शिकायत दर्ज करवाई थी। महज सात दिनों में एक दर्जन से ज्यादा मामले दर्ज किए गए।
विद्यार्थियों के मुताबिक स्कूल-कालेजों ने 10वीं-12वीं, स्नातक पाठ्यक्रम की अंकसूची, स्थानांतरण, जाति प्रमाण पत्र, माइग्रेशन सहित अन्य मूल दस्तावेज जमा करा लिए। बार-बार मांगने पर संस्थान इन्हें लौटाने को तैयार नहीं थे। कुछ विद्यार्थियों ने संस्थानों पर 10 से 15 हजार रुपये मांगने का आरोप भी लगाया था।
लगातार बढ़ रही शिकायतों को लेकर कलेक्टर ने शनिवार को आदेश जारी किया है, जिसमें उच्च शैक्षणिक संस्थाओं एवं निजी विश्वविद्यालयों को (उच्च एवं तकनीकी शिक्षण संस्थानों) को आदेशित किया है कि कोई भी शिक्षण संस्थान विद्यार्थियों के मूल दस्तावेजों को जमा नहीं करवा सकते हैं। यह विश्वविद्यालय अनुदान आयोग एवं मध्य प्रदेश शासन के संस्थानों द्वारा जारी नियमों के विरुद्ध भी है।
कलेक्टर सिंह ने कहा कि भविष्य में इस प्रकार की शिकायत मिलने पर संस्थान के विरुद्ध दंडात्मक कार्यवाही की जाएगी। बाक्स छात्रवृत्ति मिलने पर नहीं करते हैं राशि जमा दस्तावेज रखने के मामले में कई कालेजों की यह दलील रहती है कि कई बार विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति मिलती है, लेकिन वह राशि को संस्थान में जमा नहीं करवाते हैं।
फीस भरने को कहा जाता है
फीस भरने को कहा जाता है तो छात्रवृत्ति नहीं आना कहते हैं। इसके चलते संस्थान दस्तावेज अपने पास रखते हैं। वैसे ऐसा प्रत्येक संस्थान नहीं करते हैं। उधर डेढ़ साल पहले भी देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के वाणिज्य अध्ययनशाला के कुछ विद्यार्थियों ने छात्रवृत्ति मिलने के बावजूद फीस जमा नहीं की। पूछने पर विद्यार्थियों ने छात्रवृत्ति की राशि से बाइक और फोन खरीदना बताया।